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लेखनी कहानी -22-Jun-2022 रात्रि चौपाल

अधिकारियों के प्रकार  


"बाड़ाबंदी" की सफल ईवेंट होने के बाद कलेक्टर अविनाश का रुतबा अचानक बढ गया । मुख्यमंत्री जी के प्रधान सचिव ने स्वयं फोन करके उसकी तारीफों के पुल बांध दिए और कहा "पहली पोस्टिंग के शुरुआती दिनों में ही जिस तरह तुमने अपने प्रबंधकीय कौशल का परिचय दिया है वह अद्भुत है । सी एम साहब बहुत खुश हैं । इसी तरह से काम किये जाओ , एक दिन सी एम साहब अपने जिले की कलेक्ट्री दे देंगे तुम्हें । वैल डन" । अविनाश की कॉलर ऊंची हो गई  । 

इतना सफल आयोजन संपन्न हो जाये और प्रशस्ति गान नहीं हो , यह कैसे हो सकता है ? "दरबारी" लोग तो साहब के  "अंदर" घुसने का मौका तलाशते रहते हैं । ऐसे आयोजन उनके लिये सुनहरा अवसर लेकर आते हैं । सत्ता का एक सिद्धांत होता है "हाकम को दिखते रहो पुजते रहो" । मतलब साहब की निगाहों में बने रहो और जनता की निगाहों में महत्वपूर्ण बने रहो । साहब भी खुश , जनता भी खुश और चमचों को पौ बारह । इसलिए ऐसे अवसर को ढंग से सेलिब्रेट किया जाना चाहिए  । अत : इसे "सेलिब्रेट" करने के लिये एक विशाल आयोजन किया गया । 

इसी रिजॉर्ट के हॉल में "आभार प्रकटीकरण पार्टी" का आयोजन किया गया । जिले के समस्त अधिकारियों को इसमें बुलाया गया । सारी व्यवस्थाएं तहसीलदारों और उप पंजीयकों को सौंप दी गई । प्रशासन में इन अधिकारियों को इस प्रकार की व्यवस्थाओं का "एक्सपर्ट" माना जाता है । हालांकि इन लोगों ने "पार्टी मैनेजमेंट" का कक्का भी नहीं पढा था मगर इसके बावजूद ये लोग एक्सपर्ट बने हुए थे ।

एक तहसीलदार से जब इस विषय में पूछा गया कि वह एक्सपर्ट कैसे बना ? तो उसने हाथ जोड़कर कहा कि उसे भी यहीं आकर पता चला है कि वह इस तरह के "मैनेजमेंट" का एक्सपर्ट है । आज से पहले तो उसे खुद पता नहीं था । जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने ये मैनेजमेंट कैसे किया ? तो तहसीलदार जी ने कहा " हम तो काम करते नहीं केवल दस्तखत करते हैं । सारा काम तो पटवारी ही करते हैं । वस्तुत : पटवारी वित्त , नाजरात,  खाद्य व आपूर्ति , आबकारी विभागों की व्यवस्था देखते हैं । वे ऐसी पार्टियों के अभ्यस्त माने जाते हैं । इनको "विषय विशेषज्ञ" भी उपलब्ध करवाये जाते हैं जिससे पार्टी में चार चांदलग जायें । जैसे खाने पीने की व्यवस्थाओं के लिये प्रवर्तन निरीक्षक,  खाद्य निरीक्षक, दारू की व्यवस्था करने के लिये आबकारी निरीक्षक,  फूलमाला,  बूके , गिफ्ट वगैरह के लिए उप पंजीयक वगैरह की ड्यूटी लगा दी जाती है और ये सब लोग मिलकर सब कुछ "मैनेज" कर लेते हैं । हम तो केवल पर्यवेक्षण करते हैं और कुछ नहीं " । आदिकाल से चली आ रही इस सुन्दर व्यवस्था की जानकारी भी बड़ी गोपनीय होती है । हर किसी को पता नहीं चल पाता है कि यह "माइक्रो मैनेजमेंट" सिस्टम कितना मजबूत है । 

एक बड़े हॉल में कलेक्टर साहब का दरबार सजा था । अतिरिक्त कलेक्टर अपनी देखरेख में समस्त व्यवस्थाएं कर रहा था । यह पता ही नहीं लगता है कि ADM कब पी ए बन जाता है और कब वह ADM बना रहता है ? यहां पर वह दोनों भूमिकाएं अदा कर रहा था । 

तहसीलदार अपनी देखरेख में कुर्सियां लगवा रहे थे । कुर्सियों की अलग अलग श्रेणियां मंगवाई गई थी । कलेक्टर और एस पी की एक जैसी कुर्सी थी । पिछली बार जब ऐसी ही एक पार्टी हुई थी उसमें एस फी साहब की कुर्सी "नैक" हल्की किस्म की थी जिस पर एस पी साहब भड़क गये । वो तो तुरंत ही कलेक्टर साहब जैसी कुर्सी की व्यवस्था हो गई इसलिए बात वहीं खत्म हो गई वरना पता नहीं क्या होता ?  मगर एक बात तो रेखांकित हो गई कि कलेक्टर और एस पी की कुर्सी एक जैसी होनी चाहिए । बस, उस दिन से यह "संविधान" का हिस्सा बन गया । 

दूसरी श्रेणी की कुर्सियों में अतिरिक्त कलेक्टर,  अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक,  SDM , Dy.SP और एक्सईएन से ऊपर के इंजीनियर होते थे या जिला स्तरीय अधिकारी होते हैं । इन सबकी एक जैसी कुर्सी होती है जो मध्यम श्रेणी की होती है । 

तीसरी श्रेणी में तहसीलदार , उप पंजीयक , थानेदार,  निरीक्षक और अन्य स्टॉफ आता है । यह व्यवस्थाओं को संभालने का काम करता है । यह त्रिस्तरीय प्रबंधन का एक शानदार उदाहरण है जो समस्त जिलों में देखने को मिलता है । 

शाम का समय था और शाम होते ही सबका दिल मचलने लगता है । दिल बहलाने के लिए दो ही चीजें काम में आती हैं अक्सर । सुरा और सुंदरी । सुरा की व्यवस्था ऐसी पार्टियों में भरपूर होती है मगर "सुंदरियां" निषेध मानी जाती हैं । एक बार एक कलेक्टर साहब एक पार्टी में किसी विदेशी सुंदरी के साथ "ठुमके" लगाते हुए नजर आए । किसी पत्रकार ने इस दुर्लभ नजारे को अपने कैमरे में कैद कर लिया और एक वीडियो भी बना लिया । उस वीडियो को वायरल कर दिया गया । सरकार को अपनी इज्जत बचाने के लिए उन कलेक्टर साहब को निलंबित करना पड़ा । तब से प्रशासन ने सुंदरियों से दूर रहने में ही भलाई समझी । "माया महाठगिनी" का इससे बढिया उदाहरण और कोई नहीं है 

सारे अधिकारी आ गये थे । बस कलेक्टर और एस पी साहब ही रह गये थे । ADM साहब ने कलेक्टर साहब को सूचना दे दी कि सब लोग आ गये हैं अत: आप भी पधारें । जनता "दर्शनों" के लिए व्याकुल हो रही है । कलेक्टर साहब दयालु प्रवृति के आदमी हैं इसलिए समय से ही पधार गये और एस पी साहब को भी साथ ले आये । 

अधिकारियों में कलेक्टर साहब का स्वागत करने की होड़ लग गई । "नमस्कार" करने की विभिन्न मुद्राएं होती हैं । यहां पर उन सभी मुद्राओं को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । अधिकारी लोग इस "अद्भुत" दृश्य को देखकर स्वयं को धन्य महसूस करने लगे । 

कुछ अधिकारी सीधे खड़े होकर हाथ जोड़ने वाली मुद्रा में नमस्कार कर रहे थे । ऐसे अधिकारियों को "अकड़ू" कहा जाता है । इनकी रीढ अकड़ी रहती है , झुकती नहीं है । थोड़े थोड़े खुद्दार प्रवृति के होते हैं ये अधिकारी । वैसे आजकल इस प्रजाति के अधिकारी बहुत कम मिलते हैं । जिस तरह जंगल में बाघों की संख्या में निरंतर कमी आ रही है वैसे ही यह प्रजाति भी विलुप्त होने के कगार पर है । मगर यहां पर सरकार की नीतियां विरोधाभासी हैं । एक तरफ तो बाघों को संरक्षित करने का अभियान चला रही है सरकार मगर दूसरी तरफ इस प्रजाति के अफसरों का समूल नाश करने का भी बीड़ा उठा रखा है सरकार ने । इस नीति का मूल तत्व क्या है, इस पर अभी शोध कार्य चल रहा है । 

कुछ अधिकारी गर्दन को थोड़ा नीचे करके हाथ जोड़कर अभिवादन करते हैं । ऐसे अधिकारियों को "सभ्य, सुसंस्कृत,  लचीले , व्यवहार कुशल अधिकारी कहते हैं ।ऐसे अधिकारी प्रशासन का आधार स्तंभ होते हैं । इनकी रीढ एकदम सख्त नहीं होती है , थोड़ी लचीली होती है । परिस्थितियों के अनुरूप ढलने की इनकी क्षमता अद्भुत होती है । मूलतः प्रशासन रूपी गाड़ी को ये लोग ही खेंच रहे हैं । 

कुछ अधिकारी कमर से 90 डिग्री तक झुक कर नमस्कार करते हैं । ऐसे अधिकारी "चमचे" कहलाते हैं । ऐसे अधिकारी बड़े अवसरवादी होते हैं । अपना काम निकलवाने में ये बड़े सिद्ध हस्त होते हैं । वाकपटुता में इनका कोई सानी नहीं है । इनकी पहुंच साहब के "चैंबर" तक होती है । कुछ अधिकारियों की पहुंच साहब के घर तक भी होती है । ऐसे अधिकारी आजकल बहुतायत में पाये जाते हैं । 

 कुछ अधिकारी "साष्टांग दण्डवत" करके चरण स्पर्श करके प्रणाम करते हैं । ऐसे अधिकारी "गुलाम" कहलाते हैं । वस्तुत : इस प्रजाति के अधिकारी बड़े अच्छे "कलाकार" होते हैं । अभिनय के क्षेत्र में ये बिना डिग्री या डिप्लोमा क  ही पी एच डी किये हुए होते हैं ।  अंतिम दोनों "प्रजातियों" के अधिकारी सबके पसंदीदा होते हैं । साहब के सबसे नजदीक ये ही रहते हैं और नंबर एक व दो प्रजाति के अधिकारियों की चुगली करते रहते हैं । 

"भू लुंठन" करने वाले अधिकारी साहब लोगों को परम प्रिय होते हैं । इनका संबंध ऐसे होता है जैसे भगवान और भक्त का होता है । जैसे एक भक्त चौबीसों घंटे भगवान को भजते रहते हैं वैसे ही ये अधिकारी हरदम साहब का प्रशस्ति गान करते रहते हैं । मौसम चाहे कोई सा भी क्यों ना हो , इनका प्रशस्ति गान बदस्तूर रहता है । पर इनकी भक्ति तब तक ही होती है जब तक साहब कुर्सी पर बिराजमान रहते हैं । जैसे ही हाकिम बदला इनकी निष्ठा भी बदल जाती है । पर एक बात तो है कि ये लोग कुर्सी के बड़े वफादार होते हैं । साहब के लिये झूठ, छल, कपट, षड्यंत्र सब हथियार में लेते हैं ये लोग । प्रशासनिक व्यवस्था में ये लोग दीमक की तरह होते हैं जो धीरे धीरे इस व्यवस्था को "चट" करती जा रही है । एक दिन ऐसा आयेगा जब यह व्यवस्था भरभराकर गिर जायेगी । तब अपने योगदान के लिए ऐसे अधिकारियों को "पद्म विभूषण" पुरस्कार दिया जायेगा । 

श्री हरि 
17.7 22 

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3 Comments

नंदिता राय

21-Jul-2022 01:44 PM

बहुत खूब

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Abhinav ji

17-Jul-2022 09:16 AM

Very nice

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Milind salve

17-Jul-2022 06:49 AM

👌👏🙏🏻

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